Menu
blogid : 5471 postid : 1300321

डिमॉनेटाइजेशन : …. लेकिन…. से आगे

अस्तित्व
अस्तित्व
  • 1 Post
  • 0 Comment

तीन दिन तक खुद मुझे भी ये लगता रहा कि देश में एकाएक बड़ा बदलाव आएगा। क्योंकि अपनी सीमित समझ से मैंने यह हिसाब लगाया था कि अब काला धन रखने वालों की खैर नहीं है। भूल गई थी कि काला धन नकद में कम ही मिलता है।

खैर वामपंथी दावों और आरोपों पर भी यकीन नहीं है, क्योंकि यह भी विपक्षियों का तर्क है। इस बात पर भी चर्चा नहीं करना है कि सरकार ने ये करने से पहले तैयारी पूरी नहीं की है। बहुत तथ्यात्मकता में भी नहीं जाना चाहती हूँ, क्योंकि वो मेरी भी समझ नहीं आते हैं। बस तब से लेकर आज तक आयकर विभाग की एक ही बात दिमाग में अटकी हुई है कुल काले धन का महज ६ प्रतिशत ही नकद में होता है।और उसमें से भी कितना प्रतिशत हाथ में आएगा ये तो बस सरकार ही जानती है के लिए यह कुछ ज्यादा बड़ी बेवकूफी नहीं है?

इस सबके बाद जो भी मेरे हाथ लग रहा हैफिर भी मुझे अब लगातार ये लगने लगा है कि ढाई साल पूरे हो जाने के बाद भी कुछ भी महत्त न कर पाने से देश में पसरी निराशा के लिए शायद प्रधानमंत्रीजी को इससे बेहतर और कोई रास्ता नजर नहीं आया।

मुझे यह कहते हुए बहुत निराशा है कि मुझे ९८ प्रतिशत लेख इस निर्णय के नुकसान ही बता रहे हैं। मैं बहुत खुले दिमाग से इस निर्णय से होने वाले फायदे को भी जानना चाह रही हूँ। दोएक लेख जो सरकार के अपने ही पक्ष के लोग जैसे गोविंदाचार्य और वेदप्रताप वैदिक के पढ़े, उसमें भी फायदों के उलट नुकसान की ही बातें कही गई। मैं बहुत वस्तुनिष्ठ होकर कहना चाहूँगी कि यह निर्णय बहुत हद तक पोलिटिकल मायलेज लेने के लिए किया गया निर्णय है।

मैं पोलिटकली करेक्ट होने में बहुत ज्यादा यकीन नहीं करती हूँ। इसलिए कह सकती हूँ कि मुझे ये निर्णय दुस्साहसिक लगा, देश का हर नागरिक इसके सीधे प्रभाव में है और इससे यह नजर भी आएगा कि सरकार देश के नागरिकों के लिए सचमुच कुछ कर रही है।

इस बीच देशभर में लोगों के बेरोजगार होने की खबरें आ रही हैंकुछ नहीं से कुछ होने को बेहतर….

पिछले दिनों एक बौद्धिक बहस सुन रही थी, मीरा सान्याललेकिन, सोना, क्रूड आयल और विदेशी मुद्रा आदि पर भी शिकंजा कसना होगा। और बाद में जो आरटीआई कार्यकर्ता ने कही वो सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि यदि सरकार की नीयत महज काले धन पर ही प्रहार करना था तो सबसे पहले राजनीतिक दलों के फंड को आरटीआई के दायरे में लाना था। जिसे एम के वेणु ने कन्क्लूड करते हुए कहा था कि समस्या की जड़ पर प्रहार करना चाहिए था। लेकिन वो नहीं किया गया।

तभी सवाल कौंधा कि आखिर इतना दुस्साहस क्यों किया गया….

एक सीमा तक नकली मुद्रा और आतंकवाद की फंडिंग को होने वाले नुकसान को भी सही माना जा सकता हैमानूँगी कि दुष्प्रचार में बहुत ताकत है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh